by Kamlesh Yadav
१. अब मैं मन का करतीं हुँ
मैं छोटी छोटी बातों से यूँ ही ख़ुश होज़ाती हुँ,
और उससे भी छोटी छोटी बातों सेतुनक जाती हुँ।
रात में जो तारा देखा था, उसे हीदिन में ढूँढतीं हुँ,
नींद में ख़्वाब नहीं आते,मैं दिन मेंख़्वाब बुनती हुँ।
कभी कुछ पढ़तीं हुँ, कुछ यूँ ही गढ़तींरहतीं हुँ,
कोई सुने ना सुने, मैं अपनी हीकहानी कहतीं हुँ।
सब कहते हैं, मैं कुछ नहीं करतीं हुँ,
हाँ, क्यूँकि अब मैं मन का करतींहुँ।।
२. कुछ बचा है हमारे बीच
सबकुछ ख़त्म नहीं हो गया है,
कुछ न कुछ बचा है हमारे बीच।
बचे है साझे की कुछ स्मृतियाँ,
जो हमें मिला है, अपने जीवन कीनिधि से ब्याज सरीखा।
बची है ज़रा सी आशा,
जो हमें चुक जाने पर भी, रिक्त नहींहोने देगी उम्रभर,
बची है ज़रा सी प्रार्थना,
जो हमारे न होने पर भी होगी तारोंकी तरह।
नहीं, सबकुछ ख़त्म नहीं हो गया है,
अभी, कुछ न कुछ बचा है हमारेबीच।।